रविवार, 26 सितंबर 2010

एक पत्रकार कि पत्रकारिता की मौत....????

मेरा मन आज बहुत ही उदास है तो बैठ गया यह ब्लॉग लिखने कुछ समझ में नहीं आ रहा है की क्या लिखू तो अपने मन की व्यथा ही लिख रहा हूँ......

मै एक बहुत ही मध्यम परिवार का सदस्य हूँ और मुझ पर से मेरे पिता का साया ४ वर्ष की आयु में ही उठ गया और मेरी माँ ने मुझे और मेरे छोटे भाई को किसी तरह से पढाया लिखाया, १९८८ - ८९ में मै जब १० वी की पढाई कर रहा था तभी मुझमे आर्टिकल लिखने का शौक जागा, और मै अक्सर किसी न किसी विषय पर लेख लिखता रहता था पर उसे कही भेजता नहीं था, और जब ११ वी में आया तो मुझसे किसी ने कहा की तुम इतनी बढ़िया लेख लिखते हो इसे कही ना कही प्रकाशन के लिए भेज दिया करो तो तुम्हारा जेब खर्च भी निकल जाया करेगा, फिर मै स्थानीय अखबार दैनिक आज में लिख देता था फिर कॉलेज की घटनाओं को देने लगा तो स्थानीय दैनिक स्वतंत्र भारत ने मुझे कॉलेज का प्रतिनिधि बना दिया, फिर मैंने अपना कदम बढाया, और दिल्ली प्रेस की पत्रिकाओं में लेख लिखने लगा तो वहा भी मुझे युवा प्रतिनिधि का दर्जा मिला और फिर मेरा उत्साह वर्धन बढ़ने लगा और जब मैंने बी.ए में पढाई कर रहा था तभी मुझे स्थानीय साप्ताहिक अखबार वन्देमातरम का उप सम्पादक बन कर काम करने का मौका मिला और इसी बीच मेरा संपर्क मुंबई से प्रकाशित होने वाले दैनिक सामना के लोगो से हुआ और मै उनके प्रतिनिधि के तौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश की खबरों को कवर करने लगा, मेरी यहाँ की तमाम खबरें सामना / दोपहर का सामना की मुख्य पृष्ठ छपी, और इसी बीच मुझे गुजरात जाने का मौका मिला तो साप्ताहिक वन्देमातरम अखबार ने अपना ब्यूरो चीफ नियुक्त कर दिया तो वही दैनिक सामना ने भी अपना संवाददाता नियुक्त कर दिया और इसी दौरान २६ जनवरी २००१ में मुझे देश के सबसे पुराने निजी चैनल के क्षेत्रीय न्यूज़ चैनल में काम करने का मौका मिला मैंने इसे अपनी खुशनसीबी समझा और जी जान लगा कर बड़े ही इमानदारी के साथ काम करना शुरू कर और नियुक्ति के पहले दिन ही मैंने भूकंप की खबरों को ब्रेक किया, और वही दूसरी तरफ मैंने समाचार पत्रों से इस्तीफा दे दिया, और मैंने अपने काम को पूरी निष्ठा इमानदारी के साथ पूरे एक साल तक निभाया फिर मै वापस वाराणसी आया, तो जनवरी २००३ में मुझे देश के सबसे पुराने इसी न्यूज़ चैनल से कॉल आया और मुझे वाराणसी में जगह खाली है क्या आप वहां पर स्ट्रिंगर के रूप में काम करेंगे तो मैंने अपनी स्वीकृति दे दी और फिर मुझे नोएडा बुला कर मुझसे मेरा इंटरव्यू लिया गया, और वर्त्तमान सम्पादक जो उस समय इनपुट हेड हुआ करते थे उन्होंने मेरी नियुक्ति को ओके किया और मै यहाँ पर भी मैंने अपनी पूरी इमानदारी और निष्ठां से अपना दायित्व संभालते हुए खबरों को कवर कर भेजने लगा, मैंने जून २००३ में पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में डोपिंग को एक्सपोज किया, तो मुग़लसराय में पेट्रोल चोरी का खुलासा किया, और चंदौली के नौगढ में नक्सली वारदातों को कवर किया तो वाराणसी न्यायालय में फर्जी किसान बही के द्बारा जमानत के मामलों का भंडाफोड़ किया, तो सबसे पहले वाराणसी में ध्वनी व वायु प्रदुषण के खतरों को उजागर किया, और वही मैंने वाराणसी में आतंकवादी धमाको की खबर को सबसे पहले ब्रेक किया था, मुझे इन कंपनी के द्बारा चंदौली, सोनभद्र, बलिया, गोरखपुर, आजमगढ़, जौनपुर भदोही, और मिर्जापुर भी भेज दिया जाता था खबरों को कवर करने के लिए, और मै कंधे पर कैमरा और ट्राईपोड लादे अपनी मोटर साइकिल से पहुच जाता था, और कभी टैक्सी ले जाने की इजाजत मिली तो मै टैक्सी से भी जाता था,
मैंने चंदौली में सेना भरती मेले में गोली काण्ड को ब्रेक किया, और मुझे लोगो के पत्थर भी पड़े फिर भी मैंने खबर को कवर किया, पर वही जब एक विधायक के बेटे की दूसरी शादी को कवर करने के दौ़रान विधायक के गुंडों द्बारा कैमरा व अन्य उपकरणों को छीन लिया गया और पुलिस की लाठिया खानी पड़ी तो ऑफिस से कोई भी मदद तो दूर सहानभूति भी नहीं आयी जबकि दूसरे चैनलों ने अपना ओ.बी वैन भेज कर दो दिनों तक इसे कवर किया, लगभग ५० से ७० हज़ार का मेरा सामान छिना गया कोई बात करने के बजाय चैनल के इनपुट हेड कोर्डिनेशन के सहयोगी के पीछे खड़े होकर कहलवा रहे थे की अगर १५ मिनट के भीतर फुटेज नहीं आई तो समझो छुट्टी पुलिस की लाठी खाये चोट लगी होने के बावजूद मैंने किसी तरह फुटेज की व्यवस्था कर वहां भेजा, पर मुझसे यह नहीं कहा गया की तुम्हारा क्या हाल है, या क्या हुआ पर वही मुझे पता चला की इनपुट हेड ने अपने मातहतो को आदेश दे रखा है कि सभी स्ट्रिंगर को इतना परेशान कर दो कि उनका खाना पीना सोना हराम हो जाए उनके चेहरे की मुस्कान छीन लो इस कदर उनसे बात करों,
अभी यह सब चल ही रहा था और किसी तरह ये लोग मुझसे स्टोरी ले रहे थे पर अब तो ये लोग मुझसे स्टोरी लेना बंद कर दिए और ना ही मेरी पेमेंट ही किया है, कोऑर्डिनेशन हेड को फोन करता हूँ तो मुझे अछूत समझते हुए मुझसे बात ही नहीं करती और जब चैनल के सम्पादक से बात करता हूँ वो कहते है की मै देखता हूँ, ना मेरी पेमेंट हो रही है और ना ही मुझे यह कहा जा रहा है कि तुम्हे हटा दिया गया है, चैनल में १० वर्षो से काम करने का यही सिला मिला कि मुझे कदम - कदम पर अपमानित किया गया फिर भी मै काम करता रहा हूँ अब मेरी इच्छा पत्रकारिता करने कि नहीं रह गई, मुझे अब महसूस हो रहा है कि मैंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रख कर बहुत बड़ी गलती की है और अपना काफी समय बर्वाद किया अगर मै यही १०-१५ वर्ष किसी और क्षेत्र को देता तो शायद मेरा और मेरे परिवार की नैया पार हो जाती इस चैनल और पत्रकारिता ने मुझे इस कदर तबाह किया की मै सड़क पर भीख माँगने को मज़बूर हूँ, यह बात यही नहीं ख़त्म होती मैंने अपने वरिष्ठ साथियों से भी बात की कि मुझे कही और किसी चैनल में या अखबार में काम दिला दीजिये तो उन लोगो ने भी मुझसे अपना पल्ला ऐसे झाड़ा कि मै इसे जानता ही नहीं हूँ और ये वही लोग है जब ये हमारे शहर में आते थे तो मै इनकी जी हुजूरी में दिन रात लगा रहता था, कि कही इन्हें किसी तरह कि परेशानी न हो पर क्या पता था कि ये लोग बरसाती मेढक कि तरह होते है काम निकल जाने पर मै कौन ? वो कौन ?
मैंने अपने रहते कई लोगो को काम सिखाया और कुछ को तो चैनलों में नौकरी भी दिलाई पर इन लोगो ने भी मेरी पीठ पर छुरा मार कर मुझे आहत कर दिया मैंने सोचा था कि कुछ नहीं तो अपने काम आयेंगे पर ये लोग भी दोगले किस्म के निकले, मुझसे यहाँ भी बहुत बड़ी गलती हो गयी और मै इन इंसानों को पहचानने में गलती कर बैठा,
आप ही बताएं कि मेरी आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब हो चुकी है और मानसिक रूप से इतना परेशान हूँ कि यही इच्छा हो रही है कि अब मै अपनी मौत को अंजाम दे दूँ