रविवार, 15 जनवरी 2012

ग्रामीण परम्परा को शहर में जीवंत करने का अनोखा प्रयास

वाराणसी यानि काशी हमेशा से मल-मस्तो का शहर रहा है, और हमेशा से कुछ नया करने की जुगत में रहता है, और इसी कड़ी में यहाँ की एक संस्था ने मकर संक्रांति के पावन पर एक अनोखा आयोजन ढूंडा - लाई गोष्ठी का किया, जिसमे ग्रामीण परंपरा को शहर में जीवंत करने का प्रयास किया गया.
ढूंडा - लाई गोष्ठी जी हाँ इस अनोखे आयोजन का नाम है, जिसमे ग्रामीण परम्परा के अनुसार मनाई जाने वाली खिचड़ी (मकर संक्रांति ) को यहाँ शहर में मनाया जा रहा है, वाराणसी की शनिवार गोष्ठी और भारतेंदु अकादमी संस्था द्वारा आयोजित इस अनोखे आयोजन का उद्देश्य मात्र इतना है कि आज हम अपनी परम्पराओं का आधुनिकीकरण करते जा रहे हैं और इसी में यह पावन पर्व मकर संक्रांति अब अपने उद्देश्यों से भटक कर सिर्फ पतंगबाजी का दिन रह गया है, और अब इसे बचाने कि जरुरत हैं, इसी मकसद से हम लोगो ने पहली बार इसका आयोजन कर रहे हैं, यह दिन सिर्फ पतंग बाजी का नहीं, बल्कि इस दिन इतल का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इसे गुड़ के साथ खाने से शरीर में होने वाली खुश्की दूर होती है, और आज से ही सूर्य उतरायण होते है, और इस आयोजन के माध्यम से प्राचीन ग्रामीण परम्पराओं को यहाँ लाने का प्रयास कर रहे है.....
इस आयोजन में पतंग को भी रखा गया था और लोगो ने ढूंडा - लाई व अन्य व्यंजनों का लुफ्त उठाते हुए ग्रामीण परंपरा के अनुसार कविताओं का आनंद लिया, यहाँ पर हुए आयोजन में कविताओं में जहाँ खिचड़ी परंपरा का जिक्र तो था ही साथ में विबिन्न पार्टियों और संसद पर भी व्यंग की पतंग उड़ाई गयी.....
अपनी प्राचीन परम्परा को बचाने के इस अनोखे आयोजन में आयोजको ने कहा कि इस दिन पहले गंगा स्नान कर दान - पुण्य कर पहले तिल को गुड़ के साथ खाना चाहिए और फिर खिचड़ी खाना चाहिए क्योंकि यह हमारे स्वास्थ के लिए अच्छा और सुपाच्य होता और वैसा ही इस आयोजन में किया गया आयोजन में लोगो ने स्वादिष्ट खिचड़ी का लुफ्त उठाते हुए मकर संक्रांति मनाई......

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