मंगलवार, 9 नवंबर 2010

गंगा किनारे आस्था और विश्वास का अटूट संगम नागनथैया लीला


धर्म की नगरी वाराणसी में गंगा किनारे आस्था और विश्वास का अटूट संगम का नज़ारा देखने को मिला जब यहाँ के तुलसीघाट पर गंगा कुछ समय के लिए यमुना में परिवर्तित हो गयी और गंगा तट वृन्दावन के घाट में बदल गए, यहाँ पर कार्तिक मास में होने वाले लगभग ४५० वर्ष पुराने श्री कृष्ण लीला की श्रृंखला में नागनथैया लीला का आयोजन किया गया जिसमे जब भगवान श्री कृष्ण कदम्ब के वृक्ष से यमुना रूपी गंगा में छलांग लगाई तो पूरा का पूरा गंगा तट रोमांच से जय जयकार करने लगा,इस लीला को देखने देश ही नहीं विदेशो से बड़ी संख्या में लोग यहाँ पर पहुचे.आम धारणा है कि गोस्वामी तुलसीदास जीवनभर रामभक्ति में लीन रहे। यह सच हो सकता है लेकिन यह शायद अर्द्धसत्य है। नागनथैया लीला इसकी पुष्टि करती है। कारण-इस लीला की शुरुआत ही तुलसीदासजी ने कराई। शुरुआती दौर में यह लीला श्रीमद्भागवत के आधार पर होती थी। बाद में इसका आधार बदलकर 'ब्रज विलास'ग्रंथ हो गया। ब्रजविलास की रचना 18वीं शताब्दी में ब्रज के प्रसिद्ध संत ब्रजवासी दास ने की। उन्होंने काशी प्रवास के दौरान तुलसीघाट की श्रीकृष्ण लीला देखी। स्वयं तत्कालीन महंत पंडित धनीरामजी से मिलकर 'श्रीरामलीला' की ही तरह 'ब्रज विलास' को भी झांझ-मृदंग पर गाकर श्रीकृष्ण लीला की नई पद्धति चलाई। इसी पद्धति से कार्तिक कृष्ण द्वादशी से मार्ग शीर्ष प्रतिपदा तक यह लीला होती है। नागनथैया की लीला कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है,
अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के तत्वावधान में आयोजित इस अद्भुत लीला को देखने के लिए दोपहर बाद से लीलार्थियों का जमावड़ा घाट किनारे शुरू हो गया। भीड़ का आलम यह था कि तुलसीघाट के अलावा दाहिनी ओर अस्सी घाट पर भी काफी संख्या में श्रद्धालु लीला देखने के लिए खड़े थे। यही नहीं गंगा की गोद में दूर-दूर से आए लोग नावों पर बैठकर लीला के इस दृश्य को अपनी आंखों में समेटने के लिए आतुर थे। लगभग सवा चार बजे भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीदामा व बलराम सहित अन्य बाल सखाओं के साथ कंदुक क्रीड़ा शुरू की। तभी गेंद यमुना(गंगा)में जा गिरी। श्रीदामा भगवान श्रीकृष्ण से गेंद लाने की जिद करने लगे। इसके लिए गंगा में कदंब के पेड़ की डाल काटकर बांस के सहारे बांधा गया था। महाराज कुंवर अनंतनारायण सिंह साढ़े चार बजे संध्या वंदन कर रामनगर किले के बजड़े पर रखी कुर्सी पर जब बैठे तो अपार जनसमूह ने 'हर-हर महादेव' का नारा लगाया। इसके बाद 4.40 पर भगवान श्रीकृष्ण ने आव देखा न ताव वहीं किनारे कदंब के पेड़ पर चढ़कर यमुना में कूद पड़े। इधर श्रीकृष्ण के यमुना में कूदने पर गोकुल में हाहाकार मच गया। गोकुलवासी यमुना किनारे एकत्रित हो गए। कुछ ही देर में श्रीकृष्ण ने गंगा में छलांग लगा दी और थोड़ी ही देर में 20 फुट लंबे लकड़ी के बने कालीय नाग के फन पर बांसुरी बजाते वे प्रकट हो गए। तो चहुंओर 'वृन्दावन बिहारी लाल की जय' का जयकारा गूंज उठा। श्रीकृष्ण बने प्रतिरूप की लोगों ने घंटा व घड़ियाल की ध्वनि के बीच कूपर से आरती उतारी। श्रीकृष्ण ने गंगा में चारों ओर घूमकर सभी को दर्शन दिया। इस दौरान वे कुंवर अनंत नारायण सिंह के पास भी गए। उन्होंने श्रीकृष्ण को सोने की एक गिन्नी व फूलों की माला भेंट की। भगवान श्रीकृष्ण को संकटमोचन मंदिर के महंत वीरभद्र मिश्र व विश्वंभरनाथ मिश्र ने माल्यार्पण किया। लीला के बाद तुलसीघाट की सीढि़यों पर प्रतिदिन लीला के दौरान श्रीकृष्ण बने प्रतिरूप की आरती की गई। इस लीला के लिए भक्तो में होड़ इस बात की होती है कि किसी तरह लीला देखने लायक स्थान पर पैर टिकाने की जगह मिल जाए। आखिर यह ललक हो भी क्यों नहीं। यहां प्राचीन तकनीक का अद्भुत संगम जो होता है। लीला की अंतरकथा भी कुछ ऐसा ही माहौल बनाती लगती है कि सिर आस्था से झुक जाए। चाहे बात कालिय नाग को नाथने के बाद सिर पर बंसी बजाने वाले श्रीकृष्ण के चयन की हो या फिर दूसरी तैयारियों की,सुरक्षा और शुचिता का पूरा ध्यान रखा जाता है। लगभग पांच मिनट कि इस श्री कृष्ण लीला में लाखो भक्तो कि भीड़ जहाँ एक ओर आस्था और श्रध्दा में सारबोर रही वही आज के युग में इस लीला का उद्देश्य मात्र यह है कि गंगा को कालिया नाग रूपी प्रदूषण से मुक्त करना है जैसे कालिया नाग के प्रदूषण से यमुना का जल जहरीला हो गया था,और भगवान श्री कृष्ण ने प्रदूषण को दूर करने के लिए नाग नथैया लीला रची थी ठीक उसी प्रकार गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने लिए लोगो को जागृत करना है