शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

अक्षय तृतीया पर बाजारों में सन्नाटा लेकिन ऑनलाइन बाजार में चहल कदमी

लॉक डाउन और मंदी के दौर में अक्षय तृतीया के मौके पर बाजारों में छाया सन्नाटा, होगा कारोबार प्रभावित
छोटे कारोबारी और कारीगर चिंतित लेकिन बड़े कारोबारी कर रहे ऑनलाइन आभूषणों की बुकिंग

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस संकट के चलते पिछले एक महीने से देशभर में लागू हुए लॉक डाउन के कारण सभी बाजारों में सन्नाटा और दुकानों पर ताले लटके हुए है। 26 अप्रैल को पवित्र दिन अक्षय तृतीया का पर्व है और पौराणिक मान्यता के अनुसार पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर्व अक्षय फल देने वाला होता है। जिसके लिए सदियों से विशेष मुहूर्त पर आभूषण बाजार में जहां हीरे, सोने-चांदी के आभूषणो की दिल खोलकर खरीददारी की जाती है तो वही आभूषणों के शोरुम, वाहन बाजार हो या फिर इलेक्ट्रानिक बाजारों या रियल एस्टेट में ग्राहकों की भीड़ रहती है और लोग अपनी मनचाही सामानो में जमकर निवेश करते है। परन्तु सदियों पुरानी परम्परा इस वर्ष कोरोना वायरस की भेंट चढ़ जाएगी और यह परम्परा टूट जाएगी।

सुख-सौभाग्य व समृद्धि में उत्कर्ष प्रदान करने वाला पर्व अक्षय तृतीया 26 अप्रैल को है लेकिन त्योहार के इस मौके पर जहां परंपरा के आगे कीमत नहीं देखी जाती है और बाजार में तैयारियां तेज हो जाती है परन्तु इस वर्ष बाजारों में ना तो कोई तैयारियां हो रही है ना ही कोई उत्साह है हालांकि कुछ बड़े आभूषण प्रतिष्ठान डिजिटल आभूषणों की खरीददारी पर ग्राहकों को रिझा अवश्य रहे है। कारोबारियों का कहना है कि इस वर्ष अक्षय तृतीया पर बाजार में करीब चार सौ करोड़ रुपये कारोबार प्रभावित होगा। मान्यता है कि इस दिन सोना खरीदने से धन-संपत्ति का भंडार अक्षय रहता है। जीवन में समृद्धि आती है। इस तिथि को अपने लिए या फिर किसी को उपहार देने के लिए सोने व चांदी की खरीदारी का रिवाज है। जिसके लिए कारोबारी इस विशेष पर्व के लिए खासतौर पर आकर्षक डिजाइनों वाली आभूषणों की तैयारी रखते है। पर होली के पूर्व से कारोबार बिल्कुल मंदा पड़ा होने से कारोबारी और कारीगर बेहद चिंतित नजर आ रहे है।  बीते एक दशक में तो पीली धातु की कीमतें उतार-चढ़ाव के बीच साल दर साल बढ़ती ही रही हैं। इधर चार-पांच वर्षों में सोने में किए गए निवेश से सबसे ज्यादा रिटर्न मिला है। वही रियल इस्टेट में गिरावट के बीच  सोना निवेश का सबसे बेहतर माध्यम बन गया है। उत्तर प्रदेश स्वर्णकार संघ के महामंत्री  किशोर कुमार सेठ "मुन्ना" ने बताया कि अक्षय तृतीया के दिन की ऐसी धारणा है कि लोग स्वर्णाभूषण खरीदते है जिसका कभी क्षय नही होता है तथा इस तिथि में शुभ व पुण्य कार्य का भी अक्षय फल प्राप्त होता है, जिसे धार्मिक परंपरा के अनुसार अक्षय माना जाता हैं। सर्वमान्य ऐसे में लोग सोने व चाँदी के व्यवसाय से संबंधित लोगों के यहां से अक्षय तृतीया के दिन सोने या सोने से बने हुए आभूषण को क्रय करते हैं ,जिसका कभी क्षय नहीं होता। परन्तु इस समय पूरा भारत देश ही नहीं अपितु पूरा विश्व कोरोना वायरस नामक महामारी से भयग्रस्त हैं और उस महामारी से आम जन मानस की सुरक्षा के लिये लाक डाउन होने की वजह से व्यवसाय भी बंद पड़ा हुआ है। अत: इस स्वर्ण और रजत व्यवसाय का काशी में ही लगभग 300 करोड़ का अनुमानित व्यवसाय प्रभावित होगा। जबकि यह समय सबसे अधिक आभूषणों के मांग वाला होता है क्योंकि यह समय लग्न और पर्व का भी होता है। वही  उत्तर प्रदेश स्वर्णकार संघ के जिलाध्यक्ष कमल कुमार सिंह ने कहा कि इस बार कारोबार मुश्किल है ऐसे में सभी छोटे व मध्यम वर्गीय व्यवसायियों और कारीगरों के उपर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है। वाराणसी में ही लगभग 30000 कारीगर इस व्यवसाय से जुड़े हैं जिनमे अधिकांश कारीगर स्थानीय सहित पश्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र और राजस्थान से आकर स्वर्णाभूषण तैयार कर अपनी आजीविका चलाते हैं। और इस बार यह अपने रोजगार व परिवार के भरण पोषण को लेकर भविष्य के लिए चिंतित है।

अक्षय फल  वाले इस पर्व पर ही लग्न त्यौहार इत्यादि के मद्देनज़र आभूषणों और अन्य सामानो की खरीददारी होती है परन्तु लॉक डाउन के चलते छोटी बड़ी सभी प्रतिष्ठानों और शो रूम में ताले पड़े है और प्रतिष्ठानों में ग्राहकों की जगह महीने भर से जमा धूल व कारोबारियो में उत्साह की जगह निराशा ने जगह बना ली है। तो वही पर इस माहौल में भी कुछ बड़े कारोबारियों ने कारोबार का रास्ता बना कर डिजीटल कारोबार का रास्ता खोल लिया है। और कोरोना काल से परेशान लोगों को हर साल की तरह इस बार भी अक्षय तृतीया पर्व मनाने और शुभ मुहूर्त में घर बैठे ग्राहकों को व्हाट्सएप के माध्यम से आभूषण बुक कराने का मौक़ा दे रहे है। ताकि लॉक डाउन के बाद उसी भाव में स्वर्ण उपलब्ध कराया जा सके। ऐसे में बनारस के कई आभूषण कारोबारी व सर्राफा अपने ग्राहकों को खास मुहुर्त पर खरीदारी का ऑनलाइन विकल्प उपलब्ध करा रहे है. इसके तहत कोई भी वॉट्सएप के जरिए अपनी पसंदीदा आभूषण को बुक करा सकता है और लॉक डाउन के बाद इसकी डिलेवरी ले सकता है. स्कीम के तहत बुकिंग भी शुरू हो चुकी है प्रमुख आभूषण कारोबारी संतोष अग्रवाल,ने बताया कि  संकट का वक्त चल रहा है. ऐसे में सोने का रेट काफी तेजी के साथ ऊपर जा रहा है. अगर यही हाल रहा, तो आगे भी रेट ऊपर जाने की उम्मीद है. ऐसे में अगर ग्राहक भाव रेट लॉक कराकर पेमेंट कर देता है, तो उसकी खरीदारी तो हो ही जाएगी, बस उन्हें डिलेवरी ही लेना होगा. लेकिन अगर वह रेट लॉक कराकर खरीददारी नहीं करते हैं, तो एक तो उनकी शुभ मुहुर्त पर खरीदारी नहीं होगी, वहीं आगे अगर रेट बढ़ते हैं, तो उन्हें बढ़े हुए रेट के हिसाब से ही पेमेंट करना पड़ेगा. इस वक्त 24 कैरेट सोने का रेट तेजी से भाग रहा है. अक्षय तृतिया में सामान की खरीदारी ही अहम है, तो जो भी ऑनलाइन पेमेंट करेगा, उसे संस्था वॉट्सएप के जरिए उस रेट को लॉक करते हुए रेसिप्ट भेज देगी, जिससे उसकी खरीदारी पक्की हो जाएगी और उसे सिर्फ अपना सामान लेना होगा. हालाँकि उसका बुक किया हुआ कोई भी सामान लॉक डाउन के बाद ही दिया जायेगा।  वही कारोबारी  मयंक अग्रवालने कहा कि लॉकडाउन की वजह से सिर्फ  उनका ही नहीं पूरे देश का शो रूम बंद है. फ़लिहाल ऑनलाइन बुकिंग ही एक मात्रा साधन है. लेकिन इसमें हुए खरीदारी की डिलीवरी लॉक डाउन के बाद ही होगा अभी कस्टमर को पहले उनसे कॉल या व्हाट्सअप के माध्यम से रेट वर्तमान का रेट जानना होगा  रेट लॉक होने के बाद उन्हें आरटीजीएस या अन्य साधनो से ऑनलाइन पेमेंट करना होगा इसकी वैधता सितम्बर  तक रहेगी. इस बिच वह कभी भी डिलीवरी ले सकता है वो भी उसी रेट में जिस रेट में बुक हुआ है।  देश भर में लॉक डाउन के चलते लगन के साथ त्योहारी मौसम भी चला गया। नवंबर में लगन के बाद ही कहा सकता है।
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रविवार, 15 जनवरी 2012

ग्रामीण परम्परा को शहर में जीवंत करने का अनोखा प्रयास

वाराणसी यानि काशी हमेशा से मल-मस्तो का शहर रहा है, और हमेशा से कुछ नया करने की जुगत में रहता है, और इसी कड़ी में यहाँ की एक संस्था ने मकर संक्रांति के पावन पर एक अनोखा आयोजन ढूंडा - लाई गोष्ठी का किया, जिसमे ग्रामीण परंपरा को शहर में जीवंत करने का प्रयास किया गया.
ढूंडा - लाई गोष्ठी जी हाँ इस अनोखे आयोजन का नाम है, जिसमे ग्रामीण परम्परा के अनुसार मनाई जाने वाली खिचड़ी (मकर संक्रांति ) को यहाँ शहर में मनाया जा रहा है, वाराणसी की शनिवार गोष्ठी और भारतेंदु अकादमी संस्था द्वारा आयोजित इस अनोखे आयोजन का उद्देश्य मात्र इतना है कि आज हम अपनी परम्पराओं का आधुनिकीकरण करते जा रहे हैं और इसी में यह पावन पर्व मकर संक्रांति अब अपने उद्देश्यों से भटक कर सिर्फ पतंगबाजी का दिन रह गया है, और अब इसे बचाने कि जरुरत हैं, इसी मकसद से हम लोगो ने पहली बार इसका आयोजन कर रहे हैं, यह दिन सिर्फ पतंग बाजी का नहीं, बल्कि इस दिन इतल का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इसे गुड़ के साथ खाने से शरीर में होने वाली खुश्की दूर होती है, और आज से ही सूर्य उतरायण होते है, और इस आयोजन के माध्यम से प्राचीन ग्रामीण परम्पराओं को यहाँ लाने का प्रयास कर रहे है.....
इस आयोजन में पतंग को भी रखा गया था और लोगो ने ढूंडा - लाई व अन्य व्यंजनों का लुफ्त उठाते हुए ग्रामीण परंपरा के अनुसार कविताओं का आनंद लिया, यहाँ पर हुए आयोजन में कविताओं में जहाँ खिचड़ी परंपरा का जिक्र तो था ही साथ में विबिन्न पार्टियों और संसद पर भी व्यंग की पतंग उड़ाई गयी.....
अपनी प्राचीन परम्परा को बचाने के इस अनोखे आयोजन में आयोजको ने कहा कि इस दिन पहले गंगा स्नान कर दान - पुण्य कर पहले तिल को गुड़ के साथ खाना चाहिए और फिर खिचड़ी खाना चाहिए क्योंकि यह हमारे स्वास्थ के लिए अच्छा और सुपाच्य होता और वैसा ही इस आयोजन में किया गया आयोजन में लोगो ने स्वादिष्ट खिचड़ी का लुफ्त उठाते हुए मकर संक्रांति मनाई......

शनिवार, 31 दिसंबर 2011

नववर्ष पर छात्रो ने याद किया सदाबहार अभिनेता देवानंद को



नववर्ष पर छात्रो ने याद किया सदाबहार अभिनेता देवानंद को

सदाबहार फिल्मो के सदाबहार अभिनेता देवानंद को याद करते हुए वाराणसी के छात्रो ने उन्हें श्रध्दांजलि देते हुए नए वर्ष कि पूर्व संध्या पर याद किया, और उनके फिल्माए गए गीतों पर खूब मस्ती की..

वाराणसी की शैक्षणिक संस्था अरोड़ा क्लासेज की ओर नववर्ष की पूर्व संध्या पर आयोजित "देवानंद को श्रध्दांजलि" कार्यक्रम में छात्र - छात्राओं ने बालीबुड के सदाबहार व कर्मयोगी अभिनेता देवानंद को भावभीनी श्रध्दांजलि देते हुए उनके फिल्माए गीतों पर नृत्य कर नववर्ष के आगमन को और भी यादगार बना दिया,इस अवसर पर संस्था के छात्रो ने कहा की देवानंद जी आज भले हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी याद हमेशा हमारे दिल में रहेगी,उन्होंने हमें कर्म ही पूजा का सिध्दांत सिखाया है और हम उनकी इसी राह पर चलते रहेंगे.
सदाबहार अभिनेता को याद करते हुए संथा की अध्यापिकाओ ने कहा कि उनका हमारे बीच ना होना हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण है, और आज संस्था के छात्र छात्राओं ने उनके भेष भूषा में संगीतमय कार्यक्रम देकर उनको याद किया और इस नववर्ष को यादगार बना दिया, उनका जीवन हमेशा ही एक कर्मयोगी कि तरह बीता और उन्होंने हमें व हमारे कई पीढियों का मनोरंजन किया है, और उनका जीवन हमेशा से ही युवावर्ग के लिए समर्पित था.....

यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि बालीबुड के महान कलाकार को हमारे बीच से गए कुछ ही दिन गए और हम उनको भूल गए, मुंबई में कुछ एक कार्यक्रम को छोड़ दे तो उनको देश में कही भी याद नहीं किया गया, और आज वाराणसी के छात्रो ने उनको श्रध्दांजलि देकर याद किया तो देवानंद आज एक बार फिर हमारे बीच जीवित हो उठे.

रिपोर्ट -
अजय मिश्र
वाराणसी

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

काशी के इस जज्बे को हर कोई सलाम करना चाहता है

बाबा विश्वनाथ की धार्मिक नगरी काशी तो मौज मस्ती और अल्हड़ो का शहर है, यहाँ तो हर फ़िक्र को धुएं की तरह उड़ा दिया जाता है, मंगलवार की शाम जिस अंदाज़ में आतंकियों ने अपने नापाक इरादों के तहत यहाँ पर दहशत फैलाने के लिए बम विस्फोट किये थे, उन नापाक मंसूबो पर पानी फेरते हुए काशीवासियो ने अपना पन दिखाया और गंगा जमुनी तहजीब की धारा को बेरोक टोक बहने दिया.

धार्मिक नगरी काशी की सुबह मंदिरों की टन - टन और मस्जिदों की अज़ान के साथ - साथ होती यहाँ के गंगा घाटो पर एक ओर वजू होता है तो उसी घाट पर लोग स्नान करते है और ऐसे शहर में अशांति फैलाना नामुकिन है यहाँ पर सभी समुदायों के लोग हमेशा से एक दुसरे खिददमतगार रहे है.यहाँ की फिजा में जिस तरह होली के गुलाल उड़ती है तो ईद की मिठास भी घुली रहती है,

७ दिसम्बर मंगलवार की शाम जिस तरह दहशतगार्दियो ने अपने नापाक मंसूबो अंजाम देने का प्रयास किया पर उसे काशी ने नाकाम साबित कर अपने मौज मस्ती में अपने ही पुराने ढर्रे पर लौट आई और आज बुधवार की सुबह भी काशीवासियों ने अपने नित्यकर्म करते हुए गंगा में डुबकी लगाई और अपने काम - धंधे पर लग गए कही भी दहशत का नामोनिशा नहीं है गंगा के घाट हो या बाज़ार हर ओर चहल पहल हो रही है,

बनारस को पहले भी तीन बार दहशत के ज़ख्म देने की कोशिश की गयी पर हर बार दहशतगार्दियो के मंसूबो पर पानी फिरा है,यहाँ कल की घटना के बाद वाराणसी के घाटो पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गए है सभी सवेदन शील स्थानों पर पुलिस और अर्धसैनिक बालो की टुकड़ियो को तैनात किया गया है,

आज आतंक के निशान देखने केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदम्बरण वाराणसी पहुचे और सबसे पहले अस्पताल में भरती घायलों का हाल चाल लिया और फिर घटना स्थल पर हालात का जायजा लिया. और हर कोई इस

काशी के इस जज्बे को हर कोई सलाम करना चाहता है

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

गंगा किनारे आस्था और विश्वास का अटूट संगम नागनथैया लीला


धर्म की नगरी वाराणसी में गंगा किनारे आस्था और विश्वास का अटूट संगम का नज़ारा देखने को मिला जब यहाँ के तुलसीघाट पर गंगा कुछ समय के लिए यमुना में परिवर्तित हो गयी और गंगा तट वृन्दावन के घाट में बदल गए, यहाँ पर कार्तिक मास में होने वाले लगभग ४५० वर्ष पुराने श्री कृष्ण लीला की श्रृंखला में नागनथैया लीला का आयोजन किया गया जिसमे जब भगवान श्री कृष्ण कदम्ब के वृक्ष से यमुना रूपी गंगा में छलांग लगाई तो पूरा का पूरा गंगा तट रोमांच से जय जयकार करने लगा,इस लीला को देखने देश ही नहीं विदेशो से बड़ी संख्या में लोग यहाँ पर पहुचे.आम धारणा है कि गोस्वामी तुलसीदास जीवनभर रामभक्ति में लीन रहे। यह सच हो सकता है लेकिन यह शायद अर्द्धसत्य है। नागनथैया लीला इसकी पुष्टि करती है। कारण-इस लीला की शुरुआत ही तुलसीदासजी ने कराई। शुरुआती दौर में यह लीला श्रीमद्भागवत के आधार पर होती थी। बाद में इसका आधार बदलकर 'ब्रज विलास'ग्रंथ हो गया। ब्रजविलास की रचना 18वीं शताब्दी में ब्रज के प्रसिद्ध संत ब्रजवासी दास ने की। उन्होंने काशी प्रवास के दौरान तुलसीघाट की श्रीकृष्ण लीला देखी। स्वयं तत्कालीन महंत पंडित धनीरामजी से मिलकर 'श्रीरामलीला' की ही तरह 'ब्रज विलास' को भी झांझ-मृदंग पर गाकर श्रीकृष्ण लीला की नई पद्धति चलाई। इसी पद्धति से कार्तिक कृष्ण द्वादशी से मार्ग शीर्ष प्रतिपदा तक यह लीला होती है। नागनथैया की लीला कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है,
अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के तत्वावधान में आयोजित इस अद्भुत लीला को देखने के लिए दोपहर बाद से लीलार्थियों का जमावड़ा घाट किनारे शुरू हो गया। भीड़ का आलम यह था कि तुलसीघाट के अलावा दाहिनी ओर अस्सी घाट पर भी काफी संख्या में श्रद्धालु लीला देखने के लिए खड़े थे। यही नहीं गंगा की गोद में दूर-दूर से आए लोग नावों पर बैठकर लीला के इस दृश्य को अपनी आंखों में समेटने के लिए आतुर थे। लगभग सवा चार बजे भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीदामा व बलराम सहित अन्य बाल सखाओं के साथ कंदुक क्रीड़ा शुरू की। तभी गेंद यमुना(गंगा)में जा गिरी। श्रीदामा भगवान श्रीकृष्ण से गेंद लाने की जिद करने लगे। इसके लिए गंगा में कदंब के पेड़ की डाल काटकर बांस के सहारे बांधा गया था। महाराज कुंवर अनंतनारायण सिंह साढ़े चार बजे संध्या वंदन कर रामनगर किले के बजड़े पर रखी कुर्सी पर जब बैठे तो अपार जनसमूह ने 'हर-हर महादेव' का नारा लगाया। इसके बाद 4.40 पर भगवान श्रीकृष्ण ने आव देखा न ताव वहीं किनारे कदंब के पेड़ पर चढ़कर यमुना में कूद पड़े। इधर श्रीकृष्ण के यमुना में कूदने पर गोकुल में हाहाकार मच गया। गोकुलवासी यमुना किनारे एकत्रित हो गए। कुछ ही देर में श्रीकृष्ण ने गंगा में छलांग लगा दी और थोड़ी ही देर में 20 फुट लंबे लकड़ी के बने कालीय नाग के फन पर बांसुरी बजाते वे प्रकट हो गए। तो चहुंओर 'वृन्दावन बिहारी लाल की जय' का जयकारा गूंज उठा। श्रीकृष्ण बने प्रतिरूप की लोगों ने घंटा व घड़ियाल की ध्वनि के बीच कूपर से आरती उतारी। श्रीकृष्ण ने गंगा में चारों ओर घूमकर सभी को दर्शन दिया। इस दौरान वे कुंवर अनंत नारायण सिंह के पास भी गए। उन्होंने श्रीकृष्ण को सोने की एक गिन्नी व फूलों की माला भेंट की। भगवान श्रीकृष्ण को संकटमोचन मंदिर के महंत वीरभद्र मिश्र व विश्वंभरनाथ मिश्र ने माल्यार्पण किया। लीला के बाद तुलसीघाट की सीढि़यों पर प्रतिदिन लीला के दौरान श्रीकृष्ण बने प्रतिरूप की आरती की गई। इस लीला के लिए भक्तो में होड़ इस बात की होती है कि किसी तरह लीला देखने लायक स्थान पर पैर टिकाने की जगह मिल जाए। आखिर यह ललक हो भी क्यों नहीं। यहां प्राचीन तकनीक का अद्भुत संगम जो होता है। लीला की अंतरकथा भी कुछ ऐसा ही माहौल बनाती लगती है कि सिर आस्था से झुक जाए। चाहे बात कालिय नाग को नाथने के बाद सिर पर बंसी बजाने वाले श्रीकृष्ण के चयन की हो या फिर दूसरी तैयारियों की,सुरक्षा और शुचिता का पूरा ध्यान रखा जाता है। लगभग पांच मिनट कि इस श्री कृष्ण लीला में लाखो भक्तो कि भीड़ जहाँ एक ओर आस्था और श्रध्दा में सारबोर रही वही आज के युग में इस लीला का उद्देश्य मात्र यह है कि गंगा को कालिया नाग रूपी प्रदूषण से मुक्त करना है जैसे कालिया नाग के प्रदूषण से यमुना का जल जहरीला हो गया था,और भगवान श्री कृष्ण ने प्रदूषण को दूर करने के लिए नाग नथैया लीला रची थी ठीक उसी प्रकार गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने लिए लोगो को जागृत करना है

सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

आस्था के नाम पर खिलवाड़ या मजाक !!!!!!!!!!!!!!!!

धर्म और आस्था कि नगरी वाराणसी में इन दिनों आस्था के नाम पर खिलवाड़ हो रहा है,जगह - जगह राम लीलाएं आयोजित कि जा रही है,संत तुलसीदास ने वर्षो पहले इसी नगरी से रामलीला का आयोजन कर जन मानस में राम के प्रति भक्ति कि भावना को जागृत किया था पर आज यह रामलीला एक मजाक बन कर रह गया है पहले लोग रामलीला देख भगवान राम के आदर्शो पर चलने  का प्रयास करते थे पर आज रामलीला कि ऐसी तैसी कि जा रही है, कल देर रात वाराणसी के एक इलाके में रामलीला में राजगद्दी की लीला का आयोजन किया गया था जिसमे एक ओर भगवान राम का दरबार लगा था और भगवान राम समेत सभी स्वरूप बैठे थे तो दूसरी ओर बार डांसरों का फूहड़ नृत्य हो रहा था इसी में लीला में रामचरित मानस व् रामायण की चौपाइयां पढ़ी जा रही थी तो इसी लीला में मुन्नी बदनाम हुई और भोजपुरी के गीतों पर बार डांसरों के लटके झटके से आस्था खिलवाड़ बन कर रह गयी आयोजक इसे धर्म और आस्था के मुताबिक़ होने का दावा कर रहे थे और रामलीला के ११५ वर्ष पुरे होने की ख़ुशी जाहिर कर डांसरों के साथ भगवान राम की भक्ति को मजाक बना रख दिया और रात भर रामलीला का यह मंच गुलजार रहा,रामलीला के मंच पर ‘मुन्नी बदनाम हुई’के गाने पर जमकर ठुमके लगे घंटों फूहड़ डांस हुआ पुलिस - प्रशासन के अफसर बेखबर रहे पंचायत चुनावों की निषेधाज्ञा का जमकर उल्लंघन किया गया।